कभी हाथरस, उसमें भी सासनी के चंपा बाग के आम की देश-विदेश में पहचान थी। लेकिन पिछले एक दशक के दौरान ये बाग खत्म हो गए हैं। आज हालात यह है कि दूसरों को आम खिलाने वाले हाथरस में ही लोग बाहर से आए आम का स्वाद चख रहे हैं।
दक्षिणी भारतीय राज्यों से आने वाला सफेदा आम बाजार में आ गया है। हालांकि अभी लंगड़ा, दशहरी सहित अन्य प्रजातियों के आम नहीं आए हैं। हाथरस का आम तो अब बाजार से गायब ही हो गया है। फल आढ़ती फारुख बताते हैं कि सफेदा आम मंडियों में पहुंचना शुरू हो गया है। सीजन में हापुड़, बरवाना, मेरठ और लखनऊ आदि से आम आता है। हाथरस से अचारिया आम ही थोड़ा बहुत मंडी में पहुंचता है। साठ साल पहले सासनी में बाग लगने शुरू हुए थे। एक दशक पहले तक इलाके में ही चार हजार हेक्टेयर में बाग थे। सासनी में एक हजार बीघा में फैले चंपा बाग की अलग ही पहचान थी।
खेड़ा फिरोजपुर, रुदायन, धीमरपुरा, लहौर्रा, भोजगढी, तिलौठी, भूतपुरा, नहलोई, अजरोई, विघैपुर सहित कई गांवों में आम के बाग थे। यहां होने वाले चौंसा, अल्फासो, लंगड़ा , दशहरी, फजली आदि की मिठास के लोग मुरीद थे। सीजन शुरू होते ही देशभर के व्यापारी यहां आकर डेरा डाल दिया करते थे। लेकिन रोग व कीटों के प्रकोप , गिरते भूजल स्तर ने आम के बागों को खत्म कर दिया। आज यहां एक भी बाग नहीं बचा है।