संतकबीरनगर में स्टाफ नर्स की हत्या करने वाला संचालक रामजी राव पहले एक झोला छाप डॉक्टर के यहां हेल्पर के रूप में काम करता था। इसके बाद उसने धीरे-धीरे खुद की क्लीनिक खोलने के साथ ही एक बड़े अस्पताल का संचालक भी बन गया।
उसने आसपास के सरकारी चिकित्सकों की बदौलत अपने धंधे को आगे बढ़ाया। हाईवे और दुर्घटना क्षेत्र होने के चलते उसका अस्पताल चल निकला। बताते हैं कि पहले वह सेमरियांवा क्षेत्र के एक झोला छाप डॉक्टर के यहां हेल्पर के तौर पर काम करता था।

किराये की मकान में चलाने लगा अपना खुद का क्लीनिक
इसके बाद उसने वर्ष 2010 में सालेहपुर गांव के पास एक किराये की मकान में अपना खुद का क्लीनिक चलाने लगा। यही नहीं अपने क्लीनिक पर बाहर से डाक्टरों को लाकर बैठाता था। कई डॉक्टर तो ऐसे थे जो सप्ताह में एक बार ही आते थे। यही नहीं आसपास के डॉक्टर भी उसके क्लीनिक पर आते थे और मरीजों को देखते थे। उसकी सारी डीलिंग दवाओं की थी।

उसके क्लीनिक पर मरीजों से फीस नहीं ली जाती थी। नतीजा यह हो गया कि उसके क्लीनिक पर मरीजों की भीड़ होने लगी। वह आसपास के सरकारी चिकित्सालयों से भी चिकित्सकों को बुलाता था, इसकी बदौलत उसने खूब रुपये कमाए। जब उसने मेडिकल पेशा की सारी गतिविधियों को पूरी तरह से समझ लिया तब उसने 2018 में टेमा रहमत में किराये का मकान लेकर उसमें अपना अस्पताल संचलित करने लगा।

इस दौरान उसने बस्ती और संतकबीरनगर जनपद के कई सरकारी चिकित्सकों संपर्क करके उनकी ओपीडी अपने अस्पताल में चलवाने लगा। जो चिकित्सक उसके संस हॉस्पिटल एंड ट्रामा सेंटर पर आते थे, वह उसके यहां कभी पंजीकृत ही नहीं रहे। यही नहीं जिन चिकित्सकों के नाम पर उसने अस्पताल का पंजीकरण कराया है, वह भी कभी अस्पताल नहीं आते हैं।

विभाग में थी अच्छी पैठ, इस वजह से बचता रहा
पंजीकृत स्टाफ में से भी कोई उसके यहां काम करने नहीं आता था। वह झोलाछाप डाक्टरों तथा सरकारी अस्पतालों के चिकित्सकों की ओपीडी लगवाकर पूरा खेल करता था। मेन हाईवे पर स्थित इस अस्पताल पर स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदारों की भी नजर नहीं जाती थी, कारण यह था कि उसकी विभाग में अच्छी पैठ थी, जिसके बूते वह बचता रहता था।